भारत के आकाश पर चुनावी बदल छाए और नेता रूपी मोर नाचने लगे | अलग-अलग पार्टी में विभिन्य ग्रुप बन गये और नेता लगे नाच-नाच कर समझाने कि वही है इस देश के कर्णधाता जिनके बिना ना तो देश था नाही उनके बिना देशवासी रहेगा| इन में सभी छोटी-बड़ी, सत्ताधारी, सत्ता-विहीन पार्टी और उनके चपरासी टाइप नेता से लेकर शीर्षस्त नेता शामिल है|
इन पार्टियों में एक पार्टी भारतीय जनता पार्टी भी है जो पहले जनसंघ के नाम से जानी जाती थी | उस समय इसका नेतृत्व ड़ा. श्यामा प्रसाद एवं दीनदयाल उपाध्याय सरीखे नेताओं के हाथ था | अटलजी तब भी एक कद्दावर नेता थे जो कि संघ की बात तो मानते थे परंतु अपनी बात कहने और करने में पीछे नही हटते थे चाहे वह इंदिराजी को दुर्गा से तुलना करने की हो या चीन मुद्दे पर सरकार को घेरने की हो| आडवाणी उस समय अपना स्थान बना रहे थे परंतु उनका कद अटलजी से छोटा ही था और वह इस बात को जानते और मानते थे| आप सोच रहे होंगे कि जब यह लेख आडवाणीजी के सन्दर्भ में है तो अटलजी का ज़िक्र क्यों? वह इसलिए कि आडवाणी को समझने केलिए अटलजी को जानना ज़रूरी है|
अटलजी एक प्रखर राज नेता तो थे ही परंतु एक देश नेता भी थे| उन्होने कभी भी राजनीति के साथ देश नीति का समझोता नही किया| उनको तथा उस समय के सभी शीर्ष राज नेताओं को पता था की बाबरी मसजिद विवाद एक टाइम बॉम्ब है, जिसका यदि हाल नही निकाला तो फटना निश्चित है| जब कि जवाहर लाल, इंदिराजी सरीखे नेताओं ने इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में रखना उचित समझा वही अटलजी और चंद्र शेखरजी ने उसका हाल निकालने की भरपूर कोशिश किया| भारतीय जनता पार्टी का जन्म १९८० में हुआ| १९८०-८६ अटलजी के पास इसकी कमान रही| १९८६ में आडवाणीजी ने इसकी कमान लिया|आडवाणीजी अटलजी के भाँति सबको साथ लेकर चलने वाले व्यक्ति नही थे| समझदार होते हुए भी उनके विचार उग्र थे| उनको अटलजी का धीमा रवैया पसंद नही था|
२००४ के चुनाव तक अटलजी के तबीयत खराब होने लगी थी| तो एक बार आडवाणी को प्रधान-मंत्री का पद फिर से सपने मे दिखाई देने लगा| परंतु सोनियाज़ी छलावे के भाटी उनके हाथों से यह पद ले उड़ी और मनमोहन सिंघजी को इस पद पर बैठा दिया|२००९ में आडवाणीजी का सपना सपना ही रह गया| एक “कमज़ोर प्रधान-मंत्री” ने उनको पछाड़ दिया और प्रधान-मंत्री पर क़ाबिज़ ही रहा|
२०१२ में आडवाणी ने फिर से सपने संजोए| मगर इस बार मोदी उनके हाथो से परिंदा ले उड़े| आदमी दूसरों के हाथ मार खा इतना गम नही करता जितना अपनों के हाथ मार खा कर करता है| अतः आडवाणी बिखर गये| इस्तीफ़ा देते हुए उन्होने परोक्ष रूप से मोदी और कंपनी पर व्यक्तिगत राजनीति का आरोप लगाते हुए अपनी कुंठा प्रगट किया|
आडवाणीजी!! आप से प्रश्न है कि :-
1) क्या यह सच नही है कि आपने रथ यात्रा अटलजी के विरोध के बाद भी शुरू की?
2) क्या यह सच नही है कि आप जानते थे कि बाबरी मस्जिद का हल तकरीबन निकल आया था?
3) क्या यह सच नही है कि आपने रथ यात्रा की शुरूवात केवल सत्ता पाने के लिए किया था?
4) क्या यह सच नही है कि आप ने अटलजी पर उप-प्रधान-मंत्री पद के लिए नाजायज़ दबाव डाला?
5) क्या यह सच नही है कि आपने २००२ के दंगे के बाद आपने मोदी सरकार को बचाया?
6) क्या यह सच नही है कि आपने व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के लिए युवा नेतृत्व को आगे आने से रोका?
7) क्या यह सच नही है कि कर्नाटका सरकार में गड़बड़ हो की खबर पा आप चुप रहे?
8) क्या यह सच नही है कि आपने अब तीन पद से इस्तीफ़ा देने के बाद भी एन. डी. ए. के पद से इस्तीफ़ा नही दिया जिससे समय आने पर अपनी रोटी सेकी जा सके?
9) क्या यह सच नही है कि आप अब भी प्रधानमंत्री पद पाने की ईक्क्षा रखते है और उसके लिए पार्टी के हित को बलिदान करने के लिए तैय्यर है?
अगर इन प्रश्नों का उत्तर "हाँ" है, सही बात तो यह है कि इनका उतर "हाँ" ही है, तो आप झूठ बोलने के आरोपी है| अतः आप अब इज़्ज़त से राजनीति छोड़ "राम-राम" ही करे|
JAI HIND
1 comment:
You have skinned it very well
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